मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे “हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं तन्हाई के लम्हों में, दिल अकेलापन से भरा होता है, “रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं तेरा अकेलापन मुझे अकेला होने नहीं देता। तिरी ख़ुशबू मिरी चादर https://youtu.be/Lug0ffByUck